विशेषः कोरोना के बाद अब चीन पर गहरा रहा जलवायु परिवर्तन का संकट

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। दुनिया को कोरोना वायरस देने के बाद अब चीन पर जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों का संकट गहराता दिख रहा है। बेहद बुरी बाढ़ से जूझते चीन के नेशनल क्लाइमेट सेंटर द्वारा देश में वर्ष 2020 में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव संबंधी एक ब्लू बुक की मानें तो अन्य देशों के मुकाबले चीन पर जलवायु परिवर्तन का असर बेहद तेज़ी से पड़ रहा है और वहां बेतहाशा बारिश, प्रचंड गर्मी और ग्लेशियर तथा परमाफ्रॉस्ट पिघलने जैसी चरम मौसमी घटनाएं अब बदतर होती जा रही हैं।

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यह ब्लू बुक चीन की एक प्रमुख सालाना समीक्षा दस्तावेज़ है जिसमें यह आकलन किया जाता है कि जलवायु परिवर्तन का देश पर कैसा असर पड़ रहा है। ब्लू बुक 2020, चाइना मेट्रोलॉजिकल एडमिनिस्‍ट्रेशन के तहत नेशनल क्‍लाइमेट सेंटर द्वारा हर साल जारी किया जाने वाला एक सरकारी प्रकाशन है और इसके ताज़ा संस्करण में दर्ज कुछ प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं……..

·   चीन का मौसम दुनिया के औसत के मुकाबले ज्‍यादा तेजी से गर्म हो रहा है। वर्ष 1951 से चीन का तापमान औसतन 0.24 डिग्री सेल्सियस के हिसाब से बढ़ रहा है।

·   चीन में प्रचंड गर्मी पड़ने की घटनाओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल देश में अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया और 64 मौसम केन्‍द्रों ने रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया।

·   बेतहाशा बारिश होना भी अब आम बात हो गयी है। देश में हर 10 साल में अत्‍यधिक वर्षा के दिनों में 3.8 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई है।

·   चीन के आसपास समुद्र का जलस्तर वैश्विक औसत के मुकाबले ज़्यादा तेजी से चढ़ रहा है। वर्ष 1980 से 2019 के बीच चीन का तटीय समुद्री स्‍तर प्रतिवर्ष 3.4 मिमी. के हिसाब से बढ़ रहा है। यह इसी अवधि में दर्ज किये गये वैश्विक वृद्धि औसत के मुकाबले ज्‍यादा है। वर्ष 2019 में चीन का समुद्र जलस्‍तर 1993-2011 के औसत से 72 मिमी. ज्‍यादा था।

·   वैश्विक हालात की ही तरह चीन में भी ग्लेशियर पिघलने की तेज रफ्तार खासी फिक्र की बात है। वर्ष 2019 में तियानशान ग्लेशियर संख्या1, मुज तॉ ग्लेशियर और यांगत्‍झी नदी के प्रमुख स्रोत ग्लेशियर पहले के मुकाबले ज्‍यादा तेजी से पिघले। वर्ष 2019 में तियानशान ग्लेशियर संख्या 1 का पूर्वी हिस्सा 9.3 मीटर पिघल गया। यह करीब 60 साल पहले ग्लेशियर पिघलने का आकलन शुरू किये जाने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा हिस्सा है।

·   चीन के तिब्बत स्थित पठार का परमाफ्रॉस्‍ट इसके गर्म होने पर पिघल रहा है। हर गर्मी में पिघलने और सर्दियों में जमने वाली सक्रिय परत की मोटाई वर्ष 1981 से 2019 तक प्रतिदशक औसतन 19.6 सेंटीमीटर के हिसाब से बढ़ी है। यह सक्रिय परत किंघाई-तिब्‍बत राष्ट्रीय राजमार्ग से सटी है। इसका मतलब यह है कि पूरे साल बर्फ में जमी रहने वाली मिट्टी का क्षेत्र घट गया है। वर्ष 2019 में एक सक्रिय परत मोटाई के मामले में दूसरे नम्बर पर थी।

बस एक ही अच्छी खबर है कि वर्ष 2000 से 2019 के बीच चीन के सम्पूर्ण हरित आवरण में लगातार बढ़ोतरी हुई है।

यह ब्लू बुक ऐसे वक्‍त प्रकाशित की गयी है जब चीन ज़बरदस्त बाढ़ से जूझ रहा है। अगस्त के मध्य तक सैलाब से करीब 6.3 करोड़ लोग (पिछले 5 वर्षों के औसत के मुकाबले 12.7 प्रतिशत ज़्यादा) प्रभावित थे। इस आपदा में 219 लोग मारे गये या फिर लापता हो गये हैं। साथ ही देश को 26 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा है।
इस वक्त इस वक्त बाढ़ से परेशान चीन वर्ष 2020 में सूखे की मार भी झेल चुका है। अप्रैल में दक्षिण-पश्चिमी चीन स्थित यून्नान प्रांत को पिछले 10 वर्षों में सबसे बदतर सूखे का सामना करना पड़ा था। चीन में 10 लाख से ज्यादा आबादी को पानी की किल्लत और फसलें बर्बाद होने की मुसीबत उठानी पड़ी थी। मंगोलिया के अंदरूनी स्वायत्त क्षेत्र को भी कम बारिश और अधिक तापमान रूपी आपदा का सामना करना पड़ा था।
अलग-अलग विश्लेषकों के मुताबिक चीन को इन प्राकृतिक आपदाओं की वजह से गहरी आर्थिक चोट पहुंची है। चीन के यूरोपियन कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर द्वारा वर्ष 2016 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक चीन इस वक्त दुनिया में बाढ़ से सबसे ज्यादा खतरे से घिरा देश है। इसकी वजह से हर साल औसतन 25 अरब यूरो का नुकसान होने की आशंका है। पीएनएएस द्वारा वर्ष 2018 में चीन में बाढ़ की घटनाओं के संबंध में प्रकाशित एक अध्ययन में यह कहा गया है कि चीन में पानी की किल्लत से जुड़ा आर्थिक नुकसान प्रतिवर्ष 12.8 अरब डॉलर के बराबर है।