ठियोग के कलींड चोटी पर बसा मां कोटकाली मंदिर की हैं काफी मान्यता

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। राजधानी शिमला के ठियोग और कोटखाई क्षेत्र की सीमा पर ठियोग की ग्राम पंचायत कलींड की चोटी पर बसा है कोट। मां कोटकाली का पवित्र स्थान। ऊंची नीची पहाड़ियों से ओतप्रोत मध्य का नजारा अलौकिक आवरण लिए। घने वृक्षों के साए में जहाँ पक्षी मधुर संगीत पैदा करते है। चारों तरफ फैली हरी-भरी हरियाली मन के उद्वेलित तार को शांत करती है। आवारा भंवरा का मन यहीं का हो कर रह जाता है। बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह से कट जाता है।

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ठियोग हाटकोटी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर ठियोग से 20 किमी दूर बसे हल्ली नामक स्थान से सांबर वाले संपर्क मार्ग से जराई होकर और छैला से गूठान वाले संपर्क मार्ग से श्री डोम देवता गूठान के पवित्र प्रांगण से होकर बड़े बड़े और ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के ऊंचे पहाडो को पार करके महामाई काली का पवित्र बसेरा है। नवरात्र की अष्टमी वाले दिन यहाँ पर भव्य मेला लगता है और ठियोग और कौटखाई के हजारो लोग माहामायी के दर्शन करते है।उसके ऊपर केवल नीला आसमान है।

आसमान पर जब सूर्यदेव अवतरित होते हैं। तो लगता है कि सूर्यदेव भी मां काली के दीदार को अपनी किरणों का विस्तार करने को आतुर है। तीव्र किरणें मां के बसेरे पर पडते ही वातावरण तीसरी दुनिया में परिवर्तित हो जाता है। सूर्यदेव और बडे पहाड़ पर बने मां के बसेरे की दूरियां मिट सी जाती है। यह पूरा हैरतअंगेज नजारा अल सुबह देखने को मिलता है। चारों तरफ सदाबहार घने जंगलों का दृश्य प्रकृति के साक्षात दर्शन का आभास दिलाता है। यहां पर प्रकृति की लीला स्वयं में विस्मयकारी है। जहां पर बाहरी दुनिया की चकाचौंध बेअसर हो जाती है।

प्रकृति का अद्भुत रहस्य यहां पर कई यक्ष सवाल भी खडे करता है। जहां पर विज्ञान का ज्ञान भी हांफता हुआ नजर आता है। ऐसी है महामाया मां कोटकाली की महिमा। जिसका पार पाना इतना आसान नहीं है। हां, प्रकृति द्वारा प्रदत शक्ति का साक्षात्कार जरूर होता है। जो एक बार इस पवित्र स्थल पर आ जाए। हर कष्ट पल भर में दूर हो जाते हैं और भक्तजनों की सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती है।