डॉक्टर के हौसले से जीती दो जन्मों की नेत्रहीनता के ख़िलाफ़ ज़िद की जंग

अनुराधा शर्मा
चंडीगढ़।  यह कहानी बच्चे की क़िस्मत से लड़ाई लड़ने की माँ-बाप की ज़िद और उसे पूरा करने का हौसला देने वाले डॉक्टर की है. उस ज़िद और हौसले की जिसने एक माँ-बाप को उनके बच्चे के दो जन्मों तक आँखों की रोशनी दी. और उसी हौसले की बदौलत आज वो बच्चा दुनिया देख पा रहा है।
कहानी बदकिस्मती से एक बार लड़ने, हारने और फिर से उठकर क़िस्मत बदलने की प्रेरणा देने वाले ऐसे डॉक्टर से जुड़ी है जिसने दुनिया बदलने की एक माँ-बाप की ज़िद को पूरा कर दिखाया.
जम्मू निवासी दंपति, दोनों अध्यापक और अच्छी नौकरी. दुख ये कि पहला ही बच्चा और आँखों में रोशनी नहीं. डेढ़ साल तक बच्चे की आँखों का इलाज कराने को लेकर जम्मू और आसपास के इलाक़ों में डेढ़ साल तक भटकने के बाद चंडीगढ़ में कोर्निया सेंटर पहुँचने पर उन्हें पता चला कि बच्चा आँखों की एक जन्मजात जेनेटिक बीमारी ‘पीटर्ज़ अनामली’ से पीड़ित था जिसमें आँख के कोर्निया की ‘क्लाउडिंग’ हो जाती है और मरीज़ देख नहीं पाता.
कोर्निया सेंटर के विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि बच्चे की दोनों आँखों में कोर्निया ग्राफ़्ट किया गया जिसके बाद बच्चे का विज़न नॉर्मल हो गया. संचित नाम के बच्चे की तो जैसे दुनिया ही बदल गयी. क्रिकेट के शौक़ीन अपने बच्चे संचित को खेलते देखकर माँ-बाप ख़ुश थे।
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लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. बच्चे की रीढ़ की हड्डी में एक गम्भीर बीमारी हो गयी जिससे उसके शरीर का नीचे का हिस्सा कमजोर पड़ने लगा और बच्चे ने लगभग बिस्तर पकड़ लिया. इसी बीच संचित की एक आँख के कोर्निया के एपिथिलीयल सेल कमजोर हो गए और उसकी आँखों की रोशनी फिर से चली गयी।
रीढ़ की हड्डी की बीमारी के इलाज के दौरान ही संचित  के माँ-बाप उसे फिर से डॉक्टर अशोक शर्मा के पास लाए.
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़-यह जानते हुए भी कि बच्चे की हालत ख़राब होती जा रही है, माँ-बाप ने बच्चे की बदक़िस्मती बदलने की ज़िद जारी रखी. एक बार फिर से संचित की आखों में कोर्निया ग्राफ़्ट किया गया. उसका विज़न तो फिर से नॉर्मल हो गया लेकिन रीढ़ की बीमारी ला-इलाज हो गयी और बच्चे को बचाया नहीं जा सका. मात्र 14 साल की उमर में बच्चा इस दुनिया से चला गया.
कहते हैं ज़िद के आगे दुनिया झुकती है.
डॉक्टर शर्मा के सुझाव पर दम्पति ने छह महीने बाद एक नवजात बच्चे को गोद लिया और फिर से दुनिया शुरू की. इस बच्चे अनिकेत ने संचित की कमी पूरी कर दी. पर बदक़िस्मती एक बार फिर से उस दम्पति और डॉक्टर शर्मा की ज़िद और जुनून का इम्तिहान लेने को तैयार खड़ी थी. पहले बच्चे की तरह ही ठीक डेढ़ साल की उमर में खेलते हुए अनिकेत की आँख में लोहे की कील लग गयी और उसकी आँख की रोशनी चली गयी।
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़- उस घटना से मुझे लगा कि यह सच में बदकिस्मती को बदलने की ज़िद की कहानी है. माँ-बाप के जुनून को देखकर लगा कि ज़िंदगी हमारी ज़िद का इम्तिहान ले रही थी और क़िस्मत बदलने का मौक़ा दे रही थी।
जाँच के बाद पाया गया कि कोर्निया डेमेज हो गया था और लेंस अपनी जगह से डिस-लोकेट हो चुका था. प्राइमरी रिपेयर के बाद कोर्निया ग्राफ़्ट किया गया और लेंस भी प्लांट किया गया.
बच्चे की आँख की रोशनी लौट आयी. बच्चे के लिए माँ-बाप के प्यार और जुनून और उसकी आँखों की रोशनी लौटा लाने की डॉक्टर की ज़िद ने दुनिया बदल डाली. दम्पति के पहले बच्चे सचिन की तरह ही अनिकेत भी क्रिकेट का शौक़ीन है।
बदकिस्मती से लड़ने और हराने के बारे में डॉक्टर शर्मा यह कहना नहीं भूलते कि किसी की दुनिया बदलने की ज़िद लोगों में नेत्रदान करने की जागरूकता के बिना सम्भव नहीं था.

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